आज हम आपको मां ज्वाला जी के मंदिर के बारे में जानकारी देंगे
हिमाचल प्रदेश में धौलाधार पर्वत की तलहटी में वसे सुंदर कांगड़ा शहर से 30 किलोमीटर दूरी पर स्थित मां ज्वाला देवी का भव्य मंदिर है। ज्वाला देवी मंदिर को जोता वाली मां के रूप में भी जाना जाता है। यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अतुलनीय अकल्पनीय है,क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नही होती।यहां पर पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं सरस्वती,महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, अंबिका, अंजीदेवी की ज्योति रूप में पूजा होती है।
नवरात्र में इस मंदिर पर भक्तों का तांता लगा रहता है। देश विदेश से श्रद्धा से भरे हुए लोग यहाँ माथा टेकने आते है।इतिहास में दर्ज है जव बादशाह अकबर ने इस ज्वाला को बुझााने की कोशिश की थी तो उसे हर माननी पड़ी थी।वाद में अपनी हार स्वीकार करते हुए नागे पेर माँ के दरवार में सोने का छत्र चढ़ाने आए लेकिन कहते है माँ ज्वालामुखी ने क्रोदित हो कर उसे दूर पटक दिया (आज भी मंदिर के बारह मौजूद है) जिस से यह किसी भी धातु का नहीं रह।आज भी वैज्ञानिक यह पता नहीं कर पाए है कि ये छत्र किस धातु का बना हुआ है।
नवरात्र में इस मंदिर पर भक्तों का तांता लगा रहता है। देश विदेश से श्रद्धा से भरे हुए लोग यहाँ माथा टेकने आते है।इतिहास में दर्ज है जव बादशाह अकबर ने इस ज्वाला को बुझााने की कोशिश की थी तो उसे हर माननी पड़ी थी।वाद में अपनी हार स्वीकार करते हुए नागे पेर माँ के दरवार में सोने का छत्र चढ़ाने आए लेकिन कहते है माँ ज्वालामुखी ने क्रोदित हो कर उसे दूर पटक दिया (आज भी मंदिर के बारह मौजूद है) जिस से यह किसी भी धातु का नहीं रह।आज भी वैज्ञानिक यह पता नहीं कर पाए है कि ये छत्र किस धातु का बना हुआ है।
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कैसे होता है यहाँ चमत्कार कैसे बिना तेल घी के सदियों से जल रही हैं ज्वालामुखी की जोतियाँ भूगर्भ विज्ञानी सात दशकों से यह पता लगाने में असमर्थ रहे है। भूगर्भ विज्ञानी इस क्षेत्र में तेल और प्राकृतिक गैस होने का दावा करते हैं लेकिन आज तक उन्हें कुछ भी नहीं मिल सका है।
हाल ही में o n g c ने यहां ड्रिलिंग करवाई लेकिन जमीन के 20 किलोमीटर अन्दर जाने पर भी कुछ नहीं मिला।यह सब बातें यह सिद्ध करती हैं की मंदिर में ज्वाला प्राकृतिक रूप से ही नहीं चमत्कारी रूप से भी जलती है, नहीं तो आज यहां मंदिर की जगह मशीनें लगी होतीं और बिजली का उत्पादन हो रहा होता।
हाल ही में o n g c ने यहां ड्रिलिंग करवाई लेकिन जमीन के 20 किलोमीटर अन्दर जाने पर भी कुछ नहीं मिला।यह सब बातें यह सिद्ध करती हैं की मंदिर में ज्वाला प्राकृतिक रूप से ही नहीं चमत्कारी रूप से भी जलती है, नहीं तो आज यहां मंदिर की जगह मशीनें लगी होतीं और बिजली का उत्पादन हो रहा होता।
माँ ज्वालामुखी की गिनती माता की प्रमुख शक्ति पीठों में होती है। ऐसी मान्यता है कि जव भगवान शिव माँ सती के जलते हुए शरीर को ले कर कैलास पर्वत की और जा रहे थे तो यहां देवी सती की जीभ गिरी थी। जिस कारण आज भी यह ज्वाला के रूप में 9 अलग अलग जगह से निकल रही हैं जिसके ऊपर ही मंदिर बना है,इन्हें आव महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। नवरात्रों में यहाँ विषेस पूजा अर्चना कि जाती है।
इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद ने करवाया था।बाद में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और हिमाचल के राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया। यही वजह है कि इस मंदिर में हिंदुओं और सिखों की साझी आस्था है।
कैसे करे यात्रा माँ ज्वालामुखी मंदिर की।
दिल्ली या चंडीगड़ की और से आने बाले श्रदालु अम्ब रेलवे स्टेशन से टैक्सी या बस से माँ के मंदिर में आ सकते है। यदि आप मा चिंतपूर्णी के दर्शन भी कर सकते है जो रास्ते मे पड़ता है।माँ ज्वाला के दर्शन करने के बाद कागड़ा में बर्जेसब्री मंदिर और माँ चामुंडा के दर्शन भी कर सकते है जो लागभग 30 सर 40 किलोमीटर की दूरी तय करने पर है।
कैसे पहुंचें माँ ज्वालामुखी मंदिर
रेल मार्ग
रेल मार्ग से जाने वाले यात्री दिल्ली से चलने वाली हिमाचल एक्सप्रेस ट्रेन की सहायता से अम्ब रेलवे स्टेशन आ सकते हैं। अम्ब से मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा उपलब्ध है।
वायु मार्ग
ज्वालाजी मंदिर जाने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा कांगड़ा के गगल में है जो कि ज्वालाजी से 46 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहाँ से आप बस या टैक्सी से मंदिर तक जा सकते है।हफ्ते भर स्पाइस जेट विमान की सेवा उपलब्ध है दिल्ली चंडीगड़ से।
सड़क मार्ग
दिल्ली चंडीगढ़ से ज्वालामुखी मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा उपलब्ध है। आप अपने वाहन से भी जा सकते हैं रास्ता बेहद शानदार है। जीपीएस से सबसे नजदीकी रास्ता देख सकते हैं।
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