कोरोना दुनिया पर गहरे घाव छोड़ेगा,जो दशको तक नही भरेंगे।

प्रधानमंत्री जी आपने नर्सों, डॉक्टरों का शुक्रिया करने के लिए शाम पाँच बजे बालकोनी और छतों पर थाली और ताली बजाने की अपील तो कर दी लेकिन क्या आपको पता नही इंडिया में सभी लोगों के घरों में छत और बालकोनी नही है इससे एक बात साफ़ हो गई कि आपके दिमाग में जो इंडिया है उसमें सब लोग बालकोनी और छतों वाले घरों में ही रहते हैं.
By google

आज लोग अपने जीबन भर की कमाई जमा पूंजी सर पर उठाकर मिलो दूर अपने घरों को पैदल ही निकल पड़े है, न उनको किसी सरकार से उम्मीद है, और ना किसी समाज का सहारा। यकीन है तो बस अपने कदमों और हौंसलो पर 60 की उम्र पार कर चुके बजुर्ग हो या नोजवान सबको अपने घर जाना है, फिर बो सफर सैकड़ों मिल का क्यों ना हो।

यकीन मानिए जिस तरह अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद सारी दुनिया का नजरिया बदल गया उसी तरह कोरोना दुनिया मे बेहद गहरे घाव छोड़ेगा। इसका असर दसको तक लोगो के जहन में रहेगा। दुनिया हमेसा के लिए बदल जाएगी।

भारत मे इसके दुर्गामी प्रभाब पड़ेगे चाहे वह राजनीतिक हो या आर्थिक सभी बर्ग इस से अछूते नही रहेंगे, जिन लोगों को हमने अपने कीमती वोट दे कर सत्ता की चाबी दी बजाए लोगो की मदत करने के आज वह घर पर बैठ कर रामायण धारावाहिक देख रहे है। जिनमे केंद्रीय मंत्री तक शामिल है। जरा TV का चेनल बदल कर दिल्ली की सड़कों पर उमडे हजूम को भी देख लेते और उनके लिए कोई ठोस कदम उठाते तो आज यह हालात न होते।

आज देश का एक तबका जिस पद यात्रा पर निकल पड़ा है वह हमारी सरकारों और हमारे समाज के लिए कई सबल खड़े करता है।गरीबो असहाय लोगो के प्रति यह उदासीनता किसी भी समाज वह देश के लिए चिंता का विषय है।

कुछ देर के लिए भूल जाते है कि आज ये जो स्थिति है व चीन की देन है। तो क्या आप 2018 में महाराष्ट्र के किसानों के मार्च और उनके लहु लोहान तलवे भी भूल गए है,क्या आप उस आदमी को भी भूल गए है जो एबोलेन्स ना मिलने पर अपनी पत्नी की लास को साइकिल पर ले जा रहा था?अगर भूल गए है तो उस माँ की गोद मे 4 साल के बच्चे की लास को याद करो जिसे हॉस्पिटल बालो ने एबोलेन्स ना होने का बहाना कर घर भेज दिया।

ज़रा सोचिए
हम एक सामाजिक प्राणी है हम ऐसी तस्बीर देख कर भाबुक हो जाते है। और अपनी गाड़ी कमाई से कुछ हिसा चंदे और डोनेशन के लिए तैयार हो जाते है। उस समय हमारी चेतना महाराष्ट्र के किसान, साइकिल लास ढोने बाले लोगों को भूल जाती है। वह बाहर से नही आये थे बह हमारे समाज का हिसा थे बराबर के नागरिक,उनकी अनदेखी करने बाला समाज आज खुद सड़को पर है।

आज समाज जागरूक है सोशल मीडिया पर ऐसी वीडियो डाली जिसमे पैदल निकले लोगों के कष्ट लोगों के सामने आए जिसके बाद TV चैनलों ने भी पैदल यात्रा करने बालो को दिखाना सुरु किया। लेकिन उन खबरों में भी लोगो की चिंता कम इस बात का ज्यादा हंगामा करते दिखे की इस से लॉकडाउन फेल हो जाएगा।

जो लोग सुबह कमा कर साम को खाने बाले 21 दिन एक ही गजह पड़े रहते और भूख से मार जाते

आज भारत से गरीबी खत्म करने के दावे एक दिन में हवा हो गए।

आज विदेशो के लिए स्पेशल हबाई जहाज भेज कर वायरस के रूप में भारत लाये गए नागरिकों को गेर जिमेदार तरीके से घरों को भेज दिया। लेकिन जो मजदूर अपने ही राज्य में मजदूरी कर रहे पैदल घर आते हुए जांच के नाम पर 14 दिन राज्यों की सीमा पर ही रोकने के दिशा निर्देश जारी कर दिए गए।

लोग एक दिन घंटिया थालियां वजा कर यह सोच कर निश्चन्त हो गए कि अब हम कोरोना को ऐसे ही हरा देगे। कुछ लोगो ने तो साम 5 बजे घण्टिया और थालियां बजाते हुए जलूस तक निकल दिए जिनमे एसपी और डीएम घंटियाँ बजाते देखे गए। जहां ऐसे आलप ज्ञानी एसपी और डीएम हो बहा की कानून व्यवस्था राम भरोसे होना लाजमी है।

आदर्श भारतीय नोकर साह
हम उसी राज्य की बात कर रहे है जहा अधिकारी काँवड़ियों के पैर दबाते हुए गर्व से फ़ोटो ले कर सोसल मीडिया पर डालते है क्योंकि इससे प्रमोशन मिलने की सम्भबनाये होती हैं, हम उसी की बात कर जिस राज्य में हेलिकॉप्टर से काँवड़ियों पर फूल बरसाए जाते है।

यह सब ब्यबस्था करने बाली सरकारों को पता नही था की जब दिहाड़ी लगना बंद हो जाएगी तो गरीब मजदूर आपने गांव की और पलायन करेगा।  कुछ महान ज्ञानी लोग इस पद यात्रा को 'कोरोना पिकनिक'बता कर लोगो का उपहास उड़ा रहे है और अपने आप को देश का आदर्श नागरिक बता कर। पैदल निकलने लोगो को देश की छबि खराब करने का आरोप लगाते दिख रहे हैं।

आज लोग सड़कों पर अपनी मर्जी से नही निकले,यह नही निकलते अगर पुलिस जो आज डंडे मार रही है लॉक डाउन से पहले बताती की आपके 21 दिन खाने का इंतजाम किए गए है। बाहर ना निकले आपको घर पर खाना मिलेगा। लेकिन दूरदर्शन पर रामायण देखने बाले मंत्रियों के पास प्रसासन को दिशा निर्देश देने की दूर दृष्टि कहा थी।

आज कोई ग़रीबों की थोड़ी-बहुत मदद शायद कर भी दें पर क्या हम दिल से हर इंसान को बराबर मानते है? यही हमारा एक कड़वा सच है, और यही हमारा समाज।

हमारा सामाजिक व्यवहार
ऐसा नही है कि आज भारत गरीब देश है आज देश भर के मंदिरों तिरुपति से लेकर वैष्णो देवी तक लाखों-करोड़ो रुपये लोग दान करते हैं. राज्यों के पास विशाल मूर्तियाँ लगाने, भव्य मंदिर बनाने के नाम पर जितना भी चाहिए पैसा आ जाता है,यही पैसा अगर हॉस्पिटल और स्वास्थ्य सेवाएं बढ़ाने में किया जाए तो आगे आने बाली आपदाओं से निपटने के लिए हम सक्षम हो जायेगे।

यह मुश्किल समय है, ऐसी बातें चुभ सकती हैं, लेकिन सवाल खड़े करती है क्या हम कोरोना से लड़ाई के बाद समाजिक राजनीतिक क्षुद्रताओं को ठुकरा देगे क्या देश के सभी नागरिकों के लिए अछे अस्पताल काम ख़र्च बाले स्कूल और अछि यता यात जैसी सेवाओ को ज़रूरत की श्रेणी में रखने पर ध्यान देंगे।


ऊँची मूर्तियाँ और विशाल मंदिर बनाने की जब बात होगी तो क्या आप याद रखेगे कि देश में प्रति हज़ार व्यक्ति कितने डॉक्टर हैं, और कितने आपातकालीन उपकरण अस्पतालों में हैं,कुपोषित लीगो का आंकड़ा क्या हैं, देश मे कितने लोगों के पास पीने का साफ पानी है, साफ हवा जो हर किसी का प्राथमिक मौलिक अधिकार है कितनो के पास है। इत्यादि

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ